वास्तव गडरिया कोई जाति नहीं थी यह एक पेशा हुआ करता था किन्तु प्राचीन समय में पेशे से ही जाति की उत्पत्ति होती थी जैसे चमड़े का कार्य करने वाले चर्मकार अथवा चमार बन गए,लकड़ी का कार्य करने वाले बढाई बन गए लोहे का कार्य करने वाले लोहार बन गए इसी प्रकार भेड पालने वाले गडरिया बन गए! गडरिया शब्द गड़र से निकला है जो कि गांधार से लिया गया है क्युकी भेड को सबसे पहले गांधार से ही लाया गया था!गडरिया जाति को एक मूल जाति माना जाता है तथा इसके साथ अन्य उपजातियां इस प्रकार हैं पाल,बघेल,कुरुबा,धनगर ,गायरी,रेवारी,होल्कर,गाडरी,हटकर,सेंगर इत्यादि!
पाल शब्द संस्कृत शब्द पाला से आया है जिसका अर्थ होता है 'पालने वाला' अथवा 'रखने वाला'! उत्तर भारत में जो लोग भेड बकरिया पालते थे उनको पाल कहा जाता था किन्तु पाल सरनेम सबसे पहले बंगाल और बंगाल के पास के क्षेत्र वर्तमान बांग्लादेश में गुप्तोत्तर कालीन कायस्थ राजाओं ने उपयोग किया वहाँ पाल सरनेम कायस्थों द्वारा लगाया जाता है!उसके बाद महाराष्ट्र की एक शिकार करने वाली जाति ने पाल शब्द को सरनेम बनाया तथा बाद में पाल सरनेम को ग्वालियर के राजा ने अपनाया!इसी प्रकार पाल सरनेम को गढ़वाल के परमार राजपूत राजाओं ने अपनाया किन्तु बाद में उन्होंने इसको सिंह के नाम से परिवर्तित कर दिया!इस प्रकार कहा जा सकता है कि उत्तर भारत में पाल सरनेम को भेड बकरियां पालने वाले गडरिया लोगो ने लगाया और पाल गडरिया की एक उपजाति बन गयी!
उत्तर प्रदेश एवं आसपास के क्षेत्र में बघेल सरनेम एक नदी के कारण लिया गया है जो बघेल साम्राज्य के सीमा पर बहती थी उस नदी के आसपास जो गडरिया निवास करते थे वो अपने आप को बघेल/बाघेला कहने लगे तथा अपने आप को बघेल वंशज मानने लगे!
गायरी/गाडरी/रेवारी- ये उपजातियां राजस्थान में प्रचलित हैं राजस्थानी भाषा में गायर शब्द का अर्थ भेड से निकाला जाता है इस प्रकार राजस्थान में भेड पालने वाले गड़रियों द्वारा गायरी/गाडरी सरनेम का उपयोग किया जाता है!रेवारी शब्द रेवड़/रेवर से आया है राजस्थान में भेड़ों/बकरियों के झुण्ड को रेवर कहा जाता है इस प्रकार गायरी/गाडरी/रेवारी भी गडरिया जाति की उपजातियां बनी!
कुरुंबा उपजाति दक्षिण भारत में पायी जाति है तेलुगु भाषा में कुरुबा का मतलब भेड होता है इस प्रकार वहाँ भेड पालने वाले गड़रियों द्वारा कुरुबा सरनेम को अपनाया गया और कुरुंबा भी गडरिया की एक उपजाति बनी!
धनगर उपजाति महाराष्ट्र एवं दक्षिण भारत के अन्य राज्यों में प्रचलित है धनगर शब्द एक संस्कृत शब्द 'धेनुगर' से लिया गया है,जिसका अर्थ चरवाहे से होता है धनगर शब्द एक पहाड़ी 'धनग' के नाम से भी माना जाता है जो महाराष्ट्र में स्थित है एवं वहाँ चरवाहे रहा करते थे!महाराट्र में धनगर की बहुत सी उपजातियां है जैसे- धनगर/मराठा/हटकर/सेंगर/होल्कर महाराट्र में प्रचलित उपजातियां हैं हटकर लोग महाराष्ट्र,गुजरात,कर्नाटक एवं अन्य दक्षिण भारत के राज्यों में रहने वाले लोग थे!महाराष्ट्र के हटकर लोग भेड पालने वाले लड़ाकू जनजाति से थे बाद में हटकर लोगों में से ही शिवाजी निकले और मराठा राजवंश की स्थापना की!यहाँ यह बताना जरुरी है कि सभी मराठा हटकर नहीं हैं!मराठा राजवंश से ही होल्कर राजवंश बना इस प्रकार होल्कर भी गडरिया जाति की उपजाति बनी!होल्कर मध्य प्रदेश में इंदौर के प्रशासक बने!सेंगर लोग वो लोग थे जो गडरिया तो थे ही लेकिन वो भेड पालने के साथ उनकी ऊन से कम्बल बना कर बेचा करते थे!हटकर उपजाति में भी अन्य उपजातियां हैं जैसे-बारहट्टी/बारहट्टा/बरगाही/बाराहघर!
नीखर और धनगर में क्या अंतर है?- इसके पीछे एक कहानी जुडी हुई है!ये मात्र एक कहानी है जिसमे धनगर स्वयं को बड़ा मानते हैं और निखर खुद को इसमें सच्चाई नहीं है इसलिए सामाजिक समरसता के लिए धनगर निखर के भेदभाव को समाप्त कर एक होकर समाज की प्रगति में योगदान करना आवश्यक है!
Prepared by-Raj Holkar
पाल शब्द संस्कृत शब्द पाला से आया है जिसका अर्थ होता है 'पालने वाला' अथवा 'रखने वाला'! उत्तर भारत में जो लोग भेड बकरिया पालते थे उनको पाल कहा जाता था किन्तु पाल सरनेम सबसे पहले बंगाल और बंगाल के पास के क्षेत्र वर्तमान बांग्लादेश में गुप्तोत्तर कालीन कायस्थ राजाओं ने उपयोग किया वहाँ पाल सरनेम कायस्थों द्वारा लगाया जाता है!उसके बाद महाराष्ट्र की एक शिकार करने वाली जाति ने पाल शब्द को सरनेम बनाया तथा बाद में पाल सरनेम को ग्वालियर के राजा ने अपनाया!इसी प्रकार पाल सरनेम को गढ़वाल के परमार राजपूत राजाओं ने अपनाया किन्तु बाद में उन्होंने इसको सिंह के नाम से परिवर्तित कर दिया!इस प्रकार कहा जा सकता है कि उत्तर भारत में पाल सरनेम को भेड बकरियां पालने वाले गडरिया लोगो ने लगाया और पाल गडरिया की एक उपजाति बन गयी!
उत्तर प्रदेश एवं आसपास के क्षेत्र में बघेल सरनेम एक नदी के कारण लिया गया है जो बघेल साम्राज्य के सीमा पर बहती थी उस नदी के आसपास जो गडरिया निवास करते थे वो अपने आप को बघेल/बाघेला कहने लगे तथा अपने आप को बघेल वंशज मानने लगे!
गायरी/गाडरी/रेवारी- ये उपजातियां राजस्थान में प्रचलित हैं राजस्थानी भाषा में गायर शब्द का अर्थ भेड से निकाला जाता है इस प्रकार राजस्थान में भेड पालने वाले गड़रियों द्वारा गायरी/गाडरी सरनेम का उपयोग किया जाता है!रेवारी शब्द रेवड़/रेवर से आया है राजस्थान में भेड़ों/बकरियों के झुण्ड को रेवर कहा जाता है इस प्रकार गायरी/गाडरी/रेवारी भी गडरिया जाति की उपजातियां बनी!
कुरुंबा उपजाति दक्षिण भारत में पायी जाति है तेलुगु भाषा में कुरुबा का मतलब भेड होता है इस प्रकार वहाँ भेड पालने वाले गड़रियों द्वारा कुरुबा सरनेम को अपनाया गया और कुरुंबा भी गडरिया की एक उपजाति बनी!
धनगर उपजाति महाराष्ट्र एवं दक्षिण भारत के अन्य राज्यों में प्रचलित है धनगर शब्द एक संस्कृत शब्द 'धेनुगर' से लिया गया है,जिसका अर्थ चरवाहे से होता है धनगर शब्द एक पहाड़ी 'धनग' के नाम से भी माना जाता है जो महाराष्ट्र में स्थित है एवं वहाँ चरवाहे रहा करते थे!महाराट्र में धनगर की बहुत सी उपजातियां है जैसे- धनगर/मराठा/हटकर/सेंगर/होल्कर महाराट्र में प्रचलित उपजातियां हैं हटकर लोग महाराष्ट्र,गुजरात,कर्नाटक एवं अन्य दक्षिण भारत के राज्यों में रहने वाले लोग थे!महाराष्ट्र के हटकर लोग भेड पालने वाले लड़ाकू जनजाति से थे बाद में हटकर लोगों में से ही शिवाजी निकले और मराठा राजवंश की स्थापना की!यहाँ यह बताना जरुरी है कि सभी मराठा हटकर नहीं हैं!मराठा राजवंश से ही होल्कर राजवंश बना इस प्रकार होल्कर भी गडरिया जाति की उपजाति बनी!होल्कर मध्य प्रदेश में इंदौर के प्रशासक बने!सेंगर लोग वो लोग थे जो गडरिया तो थे ही लेकिन वो भेड पालने के साथ उनकी ऊन से कम्बल बना कर बेचा करते थे!हटकर उपजाति में भी अन्य उपजातियां हैं जैसे-बारहट्टी/बारहट्टा/बरगाही/बाराहघर!
नीखर और धनगर में क्या अंतर है?- इसके पीछे एक कहानी जुडी हुई है!ये मात्र एक कहानी है जिसमे धनगर स्वयं को बड़ा मानते हैं और निखर खुद को इसमें सच्चाई नहीं है इसलिए सामाजिक समरसता के लिए धनगर निखर के भेदभाव को समाप्त कर एक होकर समाज की प्रगति में योगदान करना आवश्यक है!
Prepared by-Raj Holkar